Sunday, December 12, 2010

हूँ यहाँ , हूँ वहां...........

सारा सन्नाटा 
खुद में समेंटे 
जी रही हूँ यहाँ,

एक हंसी लेके 
उन पलों के सहारे 
जी रही हूँ ,

जी रही हूँ,
यहाँ , हूँ वहां,

उन पलों में ,
समेंटे थे ख्वाब ,
वोह खुशियाँ,
उन पलों की सच्चाई,
किसी पल का अरमान था,

याद नहीं आती,
क्यूंकि-----
उन्ही में यहाँ
मै जी रही हूँ,

किन्तु,
दर्द होता है,
जब दूर-----
टिमटिमाते तारों में,
खुद को नहीं पाती हूँ,

इंतज़ार है एक बार,
फिर से उस बहार का
युहीं समय काट रही हूँ,
हूँ यहाँ ,
हूँ वहां.

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