सारा सन्नाटा
खुद में समेंटे
जी रही हूँ यहाँ,
एक हंसी लेके
उन पलों के सहारे
जी रही हूँ ,
जी रही हूँ,
यहाँ , हूँ वहां,
उन पलों में ,
समेंटे थे ख्वाब ,
वोह खुशियाँ,
उन पलों की सच्चाई,
किसी पल का अरमान था,
याद नहीं आती,
क्यूंकि-----
उन्ही में यहाँ
मै जी रही हूँ,
किन्तु,
दर्द होता है,
जब दूर-----
टिमटिमाते तारों में,
खुद को नहीं पाती हूँ,
इंतज़ार है एक बार,
फिर से उस बहार का
युहीं समय काट रही हूँ,
हूँ यहाँ ,
हूँ वहां.
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